Wednesday, January 19, 2011

इंसानियत सबसे बड़ा धर्म

मानव सभ्यता के शुरुआत से ही धर्म एक ऐसा मुद्दा रहा है जिसपर हमेशा चर्चाएँ होते रहती हैं| हालांकि खुदा ने तो हमें एक धरती बख्शी थी लेकिन हमने हिंदुस्तान और पकिस्तान बनाया| उसने तो हमें इंसान बनाया था लेकिन हमने खुद को हिंदू और मुसलमान में बाँट लिया| बात जब समुदायों में शान्ति की होती है, संवाद को जीवंत बनाये रखने की होती है तो हमें कुछ पहलुओं पर गौर करना ज़रुरी हो जाता है| मसलन वो कौन लोग हैं जो ज़हर फ़ैलाने का काम करते हैं? वो कौन कौन से कारण हैं जो लोगों को हिंसा करने को उकसाते हैं?

भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है| यहां हर धर्म के लोग रहते हैं और कोई भी किसी भी धर्म को मानने के लिए स्वतंत्र है| यह सच है कि भारतीय इतिहास पर कुछ ऐसा बदनुमा दाग लगा है जिसे कभी मिटाया नही जा सकता| लेकिन यह भी सच है कि यही वो देश है जहाँ गीता और कुरान एक साथ पढ़े जाते हैं| ऐसे कुछ लोग ही हैं जो मनुष्यों में ज़हर भरने का काम करते हैं| इसलिए सबसे पहले हमें उन ढोंगी बाबाओं और मौलानाओं का पता लगाकर उन्हें खत्म करना होगा जो धर्म के नाम पर लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते हैं और समाज में दो चेहरों के साथ रहते हैं| क्योंकि दुनिया में जितने भी धर्मग्रन्थ हैं उनका सार ही है इंसान की भलाई| कोई भी धर्म या धर्मग्रन्थ इंसानियत की हत्या की इज़ाज़त नहीं देता| और जो लोग धर्म के नाम पर हिंसा फैलाते हैं वो ये भूल जाते हैं कि जाने अनजाने वो एक इंसान की इंसानियत की हत्या करते हैं|

भगवान बुद्ध और महावीर ने भी इंसानियत और मानवता का ही पाठ पूरी दुनिया को पढ़ाया था| हालाँकि दोनों अलग अलग धर्मावलंबी थे लेकिन मकसद एक ही था –शान्ति| इसलिए हमें आज बुश नही बुद्ध चाहिए| जो एक बार फिर शान्ति का सन्देश पूरी दुनिया को पहुंचा सकें| साथ ही साथ उन लोगों को आगे आना होगा जो धर्म की असली कीमत जानते है, धर्म का उद्देश्य जानते हैं उसका मतलब समझते है और लोगों को समझा सकते हैं| कुछ राजनीतिग्य ऐसे मौकों का इस्तेमाल अपने राजनीतिक लाभ के लिए करते हैं जिसपर तत्काल रोक लगाने की ज़रूरत है| हालाँकि धर्म और राजनीति दो अलग अलग चीजें है लेकिन सत्ता की भूख और कुर्सी के लालच में कुछ तथाकथित राजनेता सबकुछ भूल जाते हैं| और युवाशक्ति में वो क्षमता है जो ये सब कर सकता है| इसलिए देश के युवाओं को सामाजिक मुद्दों के प्रति रूचि जगानी होगी जो सबसे ज़रुरी है|

इतिहास गवाह है आज़ादी की लड़ाई में भगत सिंह और अशफाक उल्ला साथ लड़े थे| गांधी जी के सहयोगियों में कई लोग मुस्लिम और दूसरे समुदायों से थे| इसलिए ऐसा नहीं है कि ये हो नहीं सकता, ज़रूरत है सिर्फ़ एक कदम बढ़ाने की| मंजिल खुद नजदीक आ जायेगी|

गिरिजेश कुमार


Tuesday, January 18, 2011

मध्यमवर्गीय परिवार का सच

दुनिया की नज़रों में भले ही हम वैश्विक शक्ति के रूप में उभर रहे हों, दुनिया भले ही हमें एक महाशक्ति के रूप में देख रही हो लेकिन ज़मीनी सच्चाई इससे कहीं हटकर है| गरीबों का देश भारत आज भी उन्ही मजबूरियों और विवशताओं के बीच रहने को विवश है जो आज से वर्षों पहले थी और जिस समय हमने नए भारत के निर्माण का सपना देखा था|

ठण्ड की छुट्टियों में मुझे जाना तो कहीं और था लेकिन कुछ कारणों से वह कार्यक्रम मुझे स्थगित कर देना पड़ा| कहते हैं उम्र आदमी को जिम्मेदार बना देता है और ज़िम्मेदारी मनुष्य को जीने की कला सिखा देता है| इस चीज़ का एहसास एक मध्यमवर्गीय परिवार को देखने से होता है|

ये सच है कि अभी भी भारत में ज्यादातर लोग या तो गरीब हैं या मध्यमवर्गीय परिवार से आते हैं| जहाँ घर कोई नई चीज़ कौतुहल का विषय बन जाता है| अमीर घरों में जहाँ मोबाइल, टी वी, फ्रिज जैसी चीजें खिलौना बन चुकी हैं वहीँ एकक मध्यमवर्गीय परिवार के लिए यह किसी वरदान से कम नहीं|

एक और चीज़ देखने को मिलती है| समझौता करने की कला| बड़ी गजब की सहनशक्ति होती है| जहाँ बड़े लोग छोटी- छोटी चीजों के लिए एक दूसरे के जान के दुश्मन बन जाते हैं वहीँ इन घरों में ऐसी कोई बात नहीं है| अगर कपडे नही हैं तो मैनेज कर लेते हैं| एक मोबाइल है तो घर के सब सदस्य बारी बारी से उसे उपयोग करेंगे| मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास ‘गोदान’ का होरी भाग्य और भगवान के भरोसे जिस तरह से अपनी पूरी जिंदगी बिता देता है उसी तरह एक मध्यमवर्गीय परिवार शायद इन सबके लिए भाग्य को ही दोषी मानता है| इसलिए कभी आप उनके मुंह से आह नहीं सुनेगे| तमन्ना ज़रूर रहती है कि काश हमरे पास भी ऐशो आराम की सुविधाएँ रहती तो अच्छा रहता! लेकिन शायद वो इसमें ही खुश रहन पसंद करते हैं|

Friday, January 14, 2011

प्यार की परिभाषा

यह सवाल बहुत बार मन में उठा कि प्यार क्या है? आम तौर पर लोग दोस्त का मतलब यह समझ लेते हैं कि दोस्त है तो लड़का ही होगा| शायद लोग ये समझते हैं लड़कियां किसी की दोस्त नहीं बन सकती| पता नहीं क्यों लेकिन मानसिकता यही रहती है| असलियत में यह समाज कभी प्यार की कीमत नहीं जान सका| किसी लड़के और लड़की के रिश्ते को हमेशा शक की निगाहों से देखा जाता रहा| हमने समय के साथ अपनी सोच नहीं बदली| आखिर क्यों होता है ऐसा?

ढाई अक्षर का ये शब्द कभी दिलों को जोड़ने के काम आता था लेकिन आज इसके मायने इतने बदल गए हैं कि लोग इसका नाम लेने से डरते हैं| प्यार राधा और कृष्ण ने भी किया था| प्यार राम और सीता में भी था| वर्षों से जिस शब्द ने लोगों को बांधे रखा आज वो खुद अपनी पहचान के लिए तरस रहा है|

हालांकि मैं यह मानता हूँ कि ऐसे कुछ लोग ही हैं| लेकिन यह समाज उन्ही कुछ लोगों की रहनुमाई में विश्वास करता है| किसी से सच्चा प्यार करो तो लोग न जाने क्या –क्या शब्द देते हैं| मैं यह दावे के साथ कह सकता हूँ ऐसे कुछ लड़के या लड़कियां हैं जो सिर्फ अपनी निजी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए प्यार को बदनाम करते हैं और उसकी आड़ में धोखा करते हैं लेकिन सब ऐसे तो नहीं हैं| फिर सच और झूठ के इस अंतर को पाटने में हम कहाँ पीछे रह जाते हैं?

Wednesday, January 12, 2011

दिल से आह निकलती है

जब भी कभी अकेला रहता हूँ मन में बहुत सारे ख्याल आते रहते हैं| कुछ अच्छे भी कुछ बुरे भी| कभी मन आहें भरता है कभी गुस्से से लाल होता है| खासकर जब समाज से जुड़े सवाल हों तो मन करता है ज़वाब जानने का | लेकिन काफी प्रयास के बावजूद भी जब जवाब नहीं मिलता तो एक अजीब सी बेचैनी से परेशान रहता हूँ| मन की इस अधेड़बुन में रोज काफी समय भी बर्बाद होता है| जाने क्यूँ दुनिया में सबको एक दूसरे से आगे निकलने की होड लगी हुई है? रास्ता चाहे कुछ भी हो, चाहे सामने वाले को कोई भी नुकसान उठाना पड़े हमें तो बस आगे निकलना है| अजीब भागदौड है जिंदगी के बीच| मानवीय मूल्य कहीं खो रहे हैं, इंसानी रिश्तों पर कीमते भारी पड़ रही हैं| पता नहीं क्यों लोगों को कुछ कर गुजरने की हड़बड़ी है? यह होड अगर समाज की भलाई के लिए हो तो बात समझ में आती है लेकिन यह तो समाज को नुकसान पहुंचा रहा है| ये कैसी दुनिया है जहाँ कोई खाने के लिए मर रहा है कोई खाते खाते मर रहा है? सामाजिक संरचना इंसान के गले की हड्डी बनी हुई जो तो बाहर आती है अंदर जाती है| हर आशंकाएं हैं, हर तरफ नफ़रत है| इंसान, इंसानियत का दुश्मन बना हुआ है| प्यार ढूंढने पर नहीं मिलता, नफ़रत हर चौराहे पर मिल जाती है| कभी भगवान बुद्ध और महावीर जैसे लोगों ने प्यार और इंसानियत का महत्व समझाया था| आज उसी का माखौल उड़ता है और किसी के दिल पर चोट नहीं लगती| सिर्फ मतलब वाले लोगों की भीड़ लगी हुई है| कहने को हम २१वीं शताब्दी में जी रहे हैं लेकिन सोच १६ वीं शताब्दी की ही है|
समाधान क्या हो? क्या लिखने से समाधान हो पायेगा? पता नहीं! लेकिन फिर भी लिखने से खुद को रोक नहीं पाता| सामाजिक मुद्दों पर लिखते-लिखते भी यह सवाल मन में कहीं चुभते रहता था कि जो लिखना चाहा नहीं लिख पाया| इसी उद्देश्य से मैंने ये नया ब्लॉग शुरू किया है| सामाजिक मुद्दों पर यदि आप मुझे पढ़ना चाहें तो इस लिंक पर क्लिक कर सकते हैं-http://nnayarasta.blogspot.com