Friday, April 29, 2011

यह कैसा समाज ?

आज देश के वर्तमान सामाजिक हालात पर नजर डालें तो यहाँ हर व्यक्ति इर्ष्या, द्वेष और पूर्वाग्रह से ग्रसित पाया जाता है| सामाजिक सद्भाव और आपसी भाईचारे के प्रतीक कहे जाने वाले इस देश को ना जाने किसकी नजर लग गई कि लोग एक दूसरे का गला घोंटने पर आमादा हैं| प्यार, प्रेम और ममता की बलि चढ़ा दी गयी और नफ़रत के पेड़ को सींचा जा रहा है| पञ्च को परमेश्वर का दर्ज़ा देने वाले इस देश में पंचों का फैसला अमानवीय और इंसानी रूह को कंपा देने वाला देखने को मिलता है|

प्राणियों में सबसे सर्वश्रेष्ठ मनुष्य को माना गया है| उसकी बुद्धि ही उसे दूसरे जीवों से अलग करती है लेकिन अफ़सोस इस बात का है इस बुद्धि का ही लोग गलत इस्तेमाल करने लगे हैं| परमपराओं में कैद हमारी सामाजिक संरचना इसे तोड़ने में नाकामयाब है और अगर किसी ने इसे तोड़ने की हिम्मत की तो तथाकथित सार्वजनिक फैसले की आड़ में उसकी आवाज सदा के लिए बंद कर दी जाती है|

लोग प्यार को सिर्फ हिकारत भरी नजर से देखते हैं उसके अंदर छुपे वात्सल्य को नजरंदाज कर देते हैं| अंतरजातीय विवाह को झूठे सम्मान और अस्तित्वहीन बदनामी से जोड़कर देखा जाता है| इसका सबसे ज्यादा खामियाजा युवाओं को भुगतना पड़ता है| न जाने कितने ही युवक युवतियां इस अंधे सामजिक प्रचलन का शिकार हुई हैं और कुछ ने सिर्फ आंसुओं को अपनी जिंदगी का जरिया बना लिया है| सवाल यह है कि इस दर्दनाक हालात को कितने लोग महसूस कर पा रहे हैं?

दरअसल हम दोष किसे दें –लोग, समाज या फिर सामाजिक व्यवस्था? समाज में जब भी कभी ऐसी अमानवीय कार्य किया जाता है दोष उस व्यवस्था को दिया जाता है लेकिन हम यह क्यों भूल जाते हैं कि इस व्यवस्था के नियमों को मनुष्य ने ही अपनी सुविधाओं के अनुरूप बनाया है फिर हमने ऐसे नियम क्यों बनाये जो इंसान से उसकी जिंदगी में फैसले लेने की आज़ादी ही छीन ले?

गिरिजेश कुमार