यह सवाल बहुत बार मन में उठा कि प्यार क्या है? आम तौर पर लोग दोस्त का मतलब यह समझ लेते हैं कि दोस्त है तो लड़का ही होगा| शायद लोग ये समझते हैं लड़कियां किसी की दोस्त नहीं बन सकती| पता नहीं क्यों लेकिन मानसिकता यही रहती है| असलियत में यह समाज कभी प्यार की कीमत नहीं जान सका| किसी लड़के और लड़की के रिश्ते को हमेशा शक की निगाहों से देखा जाता रहा| हमने समय के साथ अपनी सोच नहीं बदली| आखिर क्यों होता है ऐसा?
ढाई अक्षर का ये शब्द कभी दिलों को जोड़ने के काम आता था लेकिन आज इसके मायने इतने बदल गए हैं कि लोग इसका नाम लेने से डरते हैं| प्यार राधा और कृष्ण ने भी किया था| प्यार राम और सीता में भी था| वर्षों से जिस शब्द ने लोगों को बांधे रखा आज वो खुद अपनी पहचान के लिए तरस रहा है|
हालांकि मैं यह मानता हूँ कि ऐसे कुछ लोग ही हैं| लेकिन यह समाज उन्ही कुछ लोगों की रहनुमाई में विश्वास करता है| किसी से सच्चा प्यार करो तो लोग न जाने क्या –क्या शब्द देते हैं| मैं यह दावे के साथ कह सकता हूँ ऐसे कुछ लड़के या लड़कियां हैं जो सिर्फ अपनी निजी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए प्यार को बदनाम करते हैं और उसकी आड़ में धोखा करते हैं लेकिन सब ऐसे तो नहीं हैं| फिर सच और झूठ के इस अंतर को पाटने में हम कहाँ पीछे रह जाते हैं?
No comments:
Post a Comment