Wednesday, January 12, 2011

दिल से आह निकलती है

जब भी कभी अकेला रहता हूँ मन में बहुत सारे ख्याल आते रहते हैं| कुछ अच्छे भी कुछ बुरे भी| कभी मन आहें भरता है कभी गुस्से से लाल होता है| खासकर जब समाज से जुड़े सवाल हों तो मन करता है ज़वाब जानने का | लेकिन काफी प्रयास के बावजूद भी जब जवाब नहीं मिलता तो एक अजीब सी बेचैनी से परेशान रहता हूँ| मन की इस अधेड़बुन में रोज काफी समय भी बर्बाद होता है| जाने क्यूँ दुनिया में सबको एक दूसरे से आगे निकलने की होड लगी हुई है? रास्ता चाहे कुछ भी हो, चाहे सामने वाले को कोई भी नुकसान उठाना पड़े हमें तो बस आगे निकलना है| अजीब भागदौड है जिंदगी के बीच| मानवीय मूल्य कहीं खो रहे हैं, इंसानी रिश्तों पर कीमते भारी पड़ रही हैं| पता नहीं क्यों लोगों को कुछ कर गुजरने की हड़बड़ी है? यह होड अगर समाज की भलाई के लिए हो तो बात समझ में आती है लेकिन यह तो समाज को नुकसान पहुंचा रहा है| ये कैसी दुनिया है जहाँ कोई खाने के लिए मर रहा है कोई खाते खाते मर रहा है? सामाजिक संरचना इंसान के गले की हड्डी बनी हुई जो तो बाहर आती है अंदर जाती है| हर आशंकाएं हैं, हर तरफ नफ़रत है| इंसान, इंसानियत का दुश्मन बना हुआ है| प्यार ढूंढने पर नहीं मिलता, नफ़रत हर चौराहे पर मिल जाती है| कभी भगवान बुद्ध और महावीर जैसे लोगों ने प्यार और इंसानियत का महत्व समझाया था| आज उसी का माखौल उड़ता है और किसी के दिल पर चोट नहीं लगती| सिर्फ मतलब वाले लोगों की भीड़ लगी हुई है| कहने को हम २१वीं शताब्दी में जी रहे हैं लेकिन सोच १६ वीं शताब्दी की ही है|
समाधान क्या हो? क्या लिखने से समाधान हो पायेगा? पता नहीं! लेकिन फिर भी लिखने से खुद को रोक नहीं पाता| सामाजिक मुद्दों पर लिखते-लिखते भी यह सवाल मन में कहीं चुभते रहता था कि जो लिखना चाहा नहीं लिख पाया| इसी उद्देश्य से मैंने ये नया ब्लॉग शुरू किया है| सामाजिक मुद्दों पर यदि आप मुझे पढ़ना चाहें तो इस लिंक पर क्लिक कर सकते हैं-http://nnayarasta.blogspot.com

2 comments:

  1. बात तो आपकी बिलकुल सही है...
    पर आप इंसानियत का मूल्यांकन करेंगे भी तो कैसे? ये बात तो सही है की इंसान में कुछ कर गुजरने की होड है पर ये मानसिकता भी तो इक्कीसवी शताब्दी की दें है. तो ये विचार पुराने कैसे? एक बहुत बड़ा सवाल है की अगर मनुष्य की मह्त्वकांशाये कम हो जाये तो फिर हमारे समाज का विकास ही रुक जायेगा...
    आप इसपे क्या कहते हैं???

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  2. मि. उज्जवल मैंने यह भी लिखा है कि ये होड अगर समाज के विकास के लिए हों तो अच्छा है लेकिन ये समाज के विनाश के लिए हो रहा है|आपके सवाल का ज़वाब भी यही है|

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